Sunday, November 13, 2011

45 Days

45 दिन...
कुछ अजीब तरह से गुजरे...ये दिन...
तय कर पाना मुश्किल लगा...
बहुत ही ज्यादा थे... या काफी कम...

सब कुछ अचानक सा ही तो हुआ न...
जैसे ज़िन्दगी की ट्रेन ने बिना बताये ही...
ट्रैक बदल लिया हो...
Building 34 से... Route 66 तक...

बस रास्ता ही बदला सा रहा...
बेबसी भी उतनी ही थी...
अकेलापन भी वैसा ही था... जाना पहचाना सा...
जैसे एक ही बेचारगी के... दो चेहरे हों...
बेवफा सही.. पर ज़िन्दगी हर बार...
कुछ नया ही सिखा जाती है...

दो अलफ़ाज़ "दूरियां" और "फासले"...
कैसे एक जैसे ही लगते है न... पर फर्क होता है... शायद...

दूरियों से फासलों का पता चलता है...
दूरियां तो अब आयीं थी...
पर फासला तो हमेशा उतना ही रहा होगा... शायद...

आँखों को दिखता हुआ चमकता सितारा भी...
क्या जाने... कब का ही टूट चुका हो...
अब जो बाकी रहा है... वो बस...
दिन पर दिन कम होती जाती रौशनी...

इन गुजरे दिनों में भी...
ज़ेहन में भी कुछ बुझ सा गया है...
चराग़ सा जलता हूँ... तो तपिश कम होती जाती है...
अलाव बन जाऊं तो...


सुलगना है देर तक...


~abhi

Sunday, October 23, 2011

Chahat

हम तो मौजूद थे, रात में उजालों की तरह...
लोग निकले ही नहीं, ढूँढने वालों की तरह...


दिल तो क्या, हम रूह में भी उतर जाते...
उस ने चाहा ही नहीं, चाहने वालों की तरह...

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एक समंदर है के मेरे मुकाबिल है...
एक कतरा है के मुझ से संभाला नहीं जाता...

एक उम्र है के बितानी है तेरे बगैर...
एक लम्हा है के तेरे बिन गुजारा नहीं जाता...

Tuesday, October 11, 2011

Hawaa

ये संगदिल सी... सर्द हवा...
बदन पे लगते ही... रूह को भी ज़ख्म दे जाती है...
दरख्तों से गिरते ये पत्ते... बेरंग से... बेजान हो चुके...
बिखरते चले जाते हैं...
अपनी आपबीती बयाँ करने की कोशिश करते हुए शायद...
पर नाकाम रह जाते हैं...
बेरहम सबा फिर जीत जाती है... हर बार की तरह...

पहले भी महसूस किया है... इस हवा को... ऐसे मंज़र को...
एक ख्याल... अचानक ही ज़हन को डरा देता है...
क्या होने वाला है... इस आने वाले लम्हे में... न जाने क्या खो जाएगा...
न जाने क्या छीन ले जायेगी ये हवा... इस बार...

जेब में पड़ा हुआ अपना ही फ़ोन... टाइम बम की तरह महसूस होता है...
ये दुआ मांगी... की बस किसी तरह...
इस बार... इस फ़ोन कोई आवाज़ न आये...
हिम्मत जुटा कर... ये कदम फिर चल पड़ते हैं...
उन्ही वीरान रास्तों में... अपना घरौंदा तलाश करते हुए...

अचानक महसूस हुआ... ज़माना बहुत आगे निकल आया है...
अब तो बुरी खबर 'फेसबुक' से भी मिल जाया करती है...
और वही हो जाता है... जो नहीं होना था शायद...

एक लम्हे को ऐसे ही ख़त्म होना था... एक दास्ताँ बस यही तक थी... शायद...
शायद... इस जुस्तजू को भी सीने में ही दफ़न रह जाना था...
कितना सच गुनगुना गया वो शक्श...

" मैं फिजाओं में बिखर जाउंगा खुशबू बनकर...
रंग होगा... न बदन होगा.. न चेहरा होगा... "

~abhi

Monday, August 29, 2011

Beqaraar

तेरी बन्दगी, क्यों न हमें ना-ग़वार गुजरे... 
बेख़ुदी लायी थी तेरे दर पे... बेक़रार गुजरे...

वो नादाँ क्या जाने, ग़म-ए-तन्हाई की कीमत... 
कोई खरीदार ही न मिला... सर-ए-बाज़ार गुजरे...

जिद भी ये थी की... न भरने देंगे ये ज़ख्म...
बादाखार मायूस लौटे... कई चारागार गुजरे...

~abhi

Wednesday, August 24, 2011

Faasle

फासले यूँ भी हो जाते हैं... बेसबब नहीं फैलता जाता है आसमाँ...
ज़मीं ने, शायद... दूरियों की बात की होगी...

तू भी तो परेशाँ है... शिकवा कैसा तुझसे, कैसे रखता उम्मीदें...
माँ ने, शायद... परियों की बात की होगी...

यूँ भी हुए हम बेवफ़ा... जो एक लम्हे में ज़िन्दगी गुजार चले...
तुम ने, शायद... सदियों की बात की होगी...

~abhi

Friday, August 19, 2011

Tumhara Khayaal

तुम्हारा ख्याल...
पास ही रहता है... हर वक़्त...
दिखाई नहीं पड़ता... ज़हन में छिपा हुआ सा होता है...
बस खुशबू सी महसूस होती है... महक उठता हूँ मैं...
बनफूल हो जैसे...
कभी कस्तूरी की तरह...
मुझ में ही रहता है... और मुझ से ही दूर...
तड़प उठता हूँ मैं...
और फिर मैं... बस तुम्हारी तलाश में...
भटकता रह जाता हूँ...

तुम्हारा ख्याल...
एक जैसा नहीं रहता... हर वक़्त...
कभी चिंगारी की तरह जान पड़ता है...
खूबसूरत... पर मुख़्तसर...
और कभी जंगल की आग की तरह... जलता रहता है...
बहुत देर तक...
धुंए और राख में तब्दील होता हुआ...
तपिश कम होती जाती है... लम्हा दर लम्हा...
और अचानक ही... फिर भड़क उठता है...
जैसे किसी ने बुझते हुए अलाव में... एक फूँक डाल दी हो...
और फिर मैं... तुम्हारी याद में...
सुलगता रह जाता हूँ...

~abhi

Saturday, August 13, 2011

Kabhi Kahin

ए सबा, वो कभी मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...

उसे कहना...
के मैं अब भी, कभी पूरी नींद नहीं सो पाता... 
वही अधूरे ख्वाब, अब भी वैसे ही डराते हैं मुझे...
मैं आज भी उतना ही, सहमा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के मैं अब भी, घर देर से लौटा करता हूँ...
कई साल हुए, पर वो मकान अपना ही नहीं लगता...
मैं आज भी बहुत, तन्हा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के लोग अब भी, मुझे गिरा के आगे निकल जाते हैं...
और मैं बस वैसे ही, सिर्फ मुस्कुरा के रह जाता हूँ...
मैं आज भी, बेबस चेहरा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के वो मेरे पास थी तो, हर शह में उम्मीदें मिला करती थीं...
सब्ज़ सारे मौसम थे, फिज़ा में सब रंगें उड़ा करती थीं...
मैं आज बस एक, उदास सहरा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के न अब दवा की जरुरत है, न होगी कोई दुआ असरदार...
लम्हे भर को मेरे पहलू में वो आ जाए, बस एक बार...
जिंदगी की बाज़ी हारा हुआ, एक मोहरा सा हूँ... उसे कहना...


उसे कहना...
की वो बहुत याद आती है मुझे, हर पल... हर लम्हा...
अब भी इंतज़ार करता हूँ मैं, रुक कर, उसी मोड़ पर...
मैं आज भी वहीँ, ठहरा सा हूँ... उसे कहना...

ए सबा, वो कहीं मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...

-abhi

Azeez


अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाए...
अब इस कदर भी न चाहो के दम निकल जाए...

मोहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा...
के जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए...

मैं वो चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र-ए-दुनिया हूँ...
जो अपनी ज़ात की तन्हाइयों में जल जाए...

हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरत...

जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए...

Friday, July 22, 2011

Jaise Ye Zindagi

ये बेबसी... ये तिश्नगी... ये अकेलापन... ये आवारगी...
हर साँस जैसे क़र्ज़ हो... हो उधार जैसे ये ज़िन्दगी...

मौत की इसको तलाश है... और जीने की है बेचारगी...
हर ज़ख्म जैसे लाइलाज़ हो... हो बीमार जैसे ये ज़िन्दगी...

न ख्वाहिशों के पंख हैं... न जुस्तजू की परवानगी...
आरज़ू यहाँ एक जुर्म है... हो गुनाहगार जैसे ये ज़िन्दगी...

~abhi

Zindagi

मेरे सवालों का कोई जवाब ही नहीं देती...
बेजुबाँ अगर नहीं, तो बदगुमाँ होगी ज़िन्दगी...

अपने परवाज़ को देते रहना, हौंसलों की हवा...
ज़मीन से उठ चली, तो आसमाँ होगी ज़िन्दगी...

उलझनों को सीने में, बस इसलिए छुपा लेते हैं...
सुलझाना अगर चाहा, तो परेशाँ होगी ज़िन्दगी...

वक़्त के इशारे पे, हर मरासिम बिखर जाते हैं...
मिल के बिछड़ गए, तो दास्ताँ होगी ज़िन्दगी...

~abhi