ए सबा, वो कभी मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...
उसे कहना...
के मैं अब भी, कभी पूरी नींद नहीं सो पाता...
वही अधूरे ख्वाब, अब भी वैसे ही डराते हैं मुझे...
मैं आज भी उतना ही, सहमा सा हूँ... उसे कहना...
उसे कहना...
के मैं अब भी, घर देर से लौटा करता हूँ...
कई साल हुए, पर वो मकान अपना ही नहीं लगता...
मैं आज भी बहुत, तन्हा सा हूँ... उसे कहना...
उसे कहना...
के लोग अब भी, मुझे गिरा के आगे निकल जाते हैं...
और मैं बस वैसे ही, सिर्फ मुस्कुरा के रह जाता हूँ...
मैं आज भी, बेबस चेहरा सा हूँ... उसे कहना...
उसे कहना...
के वो मेरे पास थी तो, हर शह में उम्मीदें मिला करती थीं...
सब्ज़ सारे मौसम थे, फिज़ा में सब रंगें उड़ा करती थीं...
मैं आज बस एक, उदास सहरा सा हूँ... उसे कहना...
उसे कहना...
के न अब दवा की जरुरत है, न होगी कोई दुआ असरदार...
लम्हे भर को मेरे पहलू में वो आ जाए, बस एक बार...
जिंदगी की बाज़ी हारा हुआ, एक मोहरा सा हूँ... उसे कहना...
उसे कहना...
की वो बहुत याद आती है मुझे, हर पल... हर लम्हा...
अब भी इंतज़ार करता हूँ मैं, रुक कर, उसी मोड़ पर...
मैं आज भी वहीँ, ठहरा सा हूँ... उसे कहना...
ए सबा, वो कहीं मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...
-abhi
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