Monday, August 29, 2011

Beqaraar

तेरी बन्दगी, क्यों न हमें ना-ग़वार गुजरे... 
बेख़ुदी लायी थी तेरे दर पे... बेक़रार गुजरे...

वो नादाँ क्या जाने, ग़म-ए-तन्हाई की कीमत... 
कोई खरीदार ही न मिला... सर-ए-बाज़ार गुजरे...

जिद भी ये थी की... न भरने देंगे ये ज़ख्म...
बादाखार मायूस लौटे... कई चारागार गुजरे...

~abhi

Wednesday, August 24, 2011

Faasle

फासले यूँ भी हो जाते हैं... बेसबब नहीं फैलता जाता है आसमाँ...
ज़मीं ने, शायद... दूरियों की बात की होगी...

तू भी तो परेशाँ है... शिकवा कैसा तुझसे, कैसे रखता उम्मीदें...
माँ ने, शायद... परियों की बात की होगी...

यूँ भी हुए हम बेवफ़ा... जो एक लम्हे में ज़िन्दगी गुजार चले...
तुम ने, शायद... सदियों की बात की होगी...

~abhi

Friday, August 19, 2011

Tumhara Khayaal

तुम्हारा ख्याल...
पास ही रहता है... हर वक़्त...
दिखाई नहीं पड़ता... ज़हन में छिपा हुआ सा होता है...
बस खुशबू सी महसूस होती है... महक उठता हूँ मैं...
बनफूल हो जैसे...
कभी कस्तूरी की तरह...
मुझ में ही रहता है... और मुझ से ही दूर...
तड़प उठता हूँ मैं...
और फिर मैं... बस तुम्हारी तलाश में...
भटकता रह जाता हूँ...

तुम्हारा ख्याल...
एक जैसा नहीं रहता... हर वक़्त...
कभी चिंगारी की तरह जान पड़ता है...
खूबसूरत... पर मुख़्तसर...
और कभी जंगल की आग की तरह... जलता रहता है...
बहुत देर तक...
धुंए और राख में तब्दील होता हुआ...
तपिश कम होती जाती है... लम्हा दर लम्हा...
और अचानक ही... फिर भड़क उठता है...
जैसे किसी ने बुझते हुए अलाव में... एक फूँक डाल दी हो...
और फिर मैं... तुम्हारी याद में...
सुलगता रह जाता हूँ...

~abhi

Saturday, August 13, 2011

Kabhi Kahin

ए सबा, वो कभी मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...

उसे कहना...
के मैं अब भी, कभी पूरी नींद नहीं सो पाता... 
वही अधूरे ख्वाब, अब भी वैसे ही डराते हैं मुझे...
मैं आज भी उतना ही, सहमा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के मैं अब भी, घर देर से लौटा करता हूँ...
कई साल हुए, पर वो मकान अपना ही नहीं लगता...
मैं आज भी बहुत, तन्हा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के लोग अब भी, मुझे गिरा के आगे निकल जाते हैं...
और मैं बस वैसे ही, सिर्फ मुस्कुरा के रह जाता हूँ...
मैं आज भी, बेबस चेहरा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के वो मेरे पास थी तो, हर शह में उम्मीदें मिला करती थीं...
सब्ज़ सारे मौसम थे, फिज़ा में सब रंगें उड़ा करती थीं...
मैं आज बस एक, उदास सहरा सा हूँ... उसे कहना...

उसे कहना...
के न अब दवा की जरुरत है, न होगी कोई दुआ असरदार...
लम्हे भर को मेरे पहलू में वो आ जाए, बस एक बार...
जिंदगी की बाज़ी हारा हुआ, एक मोहरा सा हूँ... उसे कहना...


उसे कहना...
की वो बहुत याद आती है मुझे, हर पल... हर लम्हा...
अब भी इंतज़ार करता हूँ मैं, रुक कर, उसी मोड़ पर...
मैं आज भी वहीँ, ठहरा सा हूँ... उसे कहना...

ए सबा, वो कहीं मिले तुझे तो, छूके उसे कहना...

-abhi

Azeez


अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाए...
अब इस कदर भी न चाहो के दम निकल जाए...

मोहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा...
के जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए...

मैं वो चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र-ए-दुनिया हूँ...
जो अपनी ज़ात की तन्हाइयों में जल जाए...

हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरत...

जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए...