Sunday, October 31, 2010

Alfaaz

बेबसी है के बयाँ करें हम दर्द-ए-सुखन, 
पर न अल्फाजों में फ़रियाद रहे...

ज़िक्र तेरा भी हो जाये नज़्म में, 
और बेहर-ओ-काफिया भी याद रहे...

-abhi

Sunday, October 24, 2010

Shaam

तुझ बिन इक इक लम्हा, अंधेरो में गुजरा है इस कदर...
जैसे की एक रात ढली हो, और फिर शाम हो जाए...

उजाले अपनी यादों के हामारे साथ रहने दो...
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए...

Wednesday, October 13, 2010

Ashaar


वज़ह

बदलते मौसमों के साथ लोग भी बदले... अब उस मोड़ पे दोस्त, पुराने नहीं मिलते...
तेरी जुस्तजू से बोझल रहती हैं आँखें, मुझको मेरे ख्वाब, पुराने नहीं मिलते...
जीते रहने की वज़ह तो होती है, जीने के बहाने नहीं मिलते...

मुख़्तसर

एक पलक देख लूं जो तुझको, और हर जुस्तजू मुख़्तसर हो जाए...

कहर
 
उसके हुस्न का कहर, इस कदर है आसमानों में, आज तक..
आफताब बादलों में छिपता फिरता है, चाँद अधूरा है आज तक...

~abhi

Haqeeqat

कभी ख्यालों को अलफ़ाज़ नहीं मिलते...
और कहीं खामोश रहने की मजबूरी है...

जिंदगी बस सफ़हे पलटती जाती है...
और हर पन्ने पे दास्ताँ अधूरी है...

मुसाफिर हैं हम मंजिलों की तलाश में...
लम्हे भर का साथ है, सदियों की दूरी है...

हर जुस्तजू हकीकत नहीं हो सकती...
कुछ ख़्वाबों का टूट जाना ही जरूरी है...

~abhi