तेरी बन्दगी, क्यों न हमें ना-ग़वार गुजरे...
~abhi
बेख़ुदी लायी थी तेरे दर पे... बेक़रार गुजरे...
वो नादाँ क्या जाने, ग़म-ए-तन्हाई की कीमत...
कोई खरीदार ही न मिला... सर-ए-बाज़ार गुजरे...
जिद भी ये थी की... न भरने देंगे ये ज़ख्म...
बादाखार मायूस लौटे... कई चारागार गुजरे...
~abhi
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