फासले यूँ भी हो जाते हैं... बेसबब नहीं फैलता जाता है आसमाँ...
ज़मीं ने, शायद... दूरियों की बात की होगी...
तू भी तो परेशाँ है... शिकवा कैसा तुझसे, कैसे रखता उम्मीदें...
माँ ने, शायद... परियों की बात की होगी...
यूँ भी हुए हम बेवफ़ा... जो एक लम्हे में ज़िन्दगी गुजार चले...
तुम ने, शायद... सदियों की बात की होगी...
~abhi
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