Tuesday, January 4, 2011

Dekhte Hain

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं...
"फ़राज़" अब जरा लहजा बदल के देखते हैं...

जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जाने-सफ़र...
कुछ और दूर जरा साथ चल के देखते हैं...

ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में...
जो लालचों से तुझे मुझको जल के देखते हैं...

अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए...
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं...