तुम्हारा ख्याल...
पास ही रहता है... हर वक़्त...
दिखाई नहीं पड़ता... ज़हन में छिपा हुआ सा होता है...
बस खुशबू सी महसूस होती है... महक उठता हूँ मैं...
बनफूल हो जैसे...
कभी कस्तूरी की तरह...
मुझ में ही रहता है... और मुझ से ही दूर...
तड़प उठता हूँ मैं...
और फिर मैं... बस तुम्हारी तलाश में...
भटकता रह जाता हूँ...
तुम्हारा ख्याल...
एक जैसा नहीं रहता... हर वक़्त...
कभी चिंगारी की तरह जान पड़ता है...
खूबसूरत... पर मुख़्तसर...
और कभी जंगल की आग की तरह... जलता रहता है...
बहुत देर तक...
धुंए और राख में तब्दील होता हुआ...
तपिश कम होती जाती है... लम्हा दर लम्हा...
और अचानक ही... फिर भड़क उठता है...
जैसे किसी ने बुझते हुए अलाव में... एक फूँक डाल दी हो...
और फिर मैं... तुम्हारी याद में...
सुलगता रह जाता हूँ...
~abhi
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