Saturday, December 16, 2023

Ek Aur Sahar

वो समंदर बना के मुझे, डूबने को भंवर भी देता है...

पैरोँ में ज़ंजीर बाँध के, फ़िर चलने को सफर भी देता है... 


ज़िन्दगी ज़ीने के लिए ज़रूरी लोगों से पहचान कराके... 

फिर तनहा जीने को, एक लम्बी उमर भी देता है... 


मैं लहू के कतरे से रात की आखिरी क़िस्त भी भर दूँ... 

वो मेरी हर शाम के बाद एक और सहर भी देता है... 


~abhi