Friday, July 22, 2011

Jaise Ye Zindagi

ये बेबसी... ये तिश्नगी... ये अकेलापन... ये आवारगी...
हर साँस जैसे क़र्ज़ हो... हो उधार जैसे ये ज़िन्दगी...

मौत की इसको तलाश है... और जीने की है बेचारगी...
हर ज़ख्म जैसे लाइलाज़ हो... हो बीमार जैसे ये ज़िन्दगी...

न ख्वाहिशों के पंख हैं... न जुस्तजू की परवानगी...
आरज़ू यहाँ एक जुर्म है... हो गुनाहगार जैसे ये ज़िन्दगी...

~abhi

Zindagi

मेरे सवालों का कोई जवाब ही नहीं देती...
बेजुबाँ अगर नहीं, तो बदगुमाँ होगी ज़िन्दगी...

अपने परवाज़ को देते रहना, हौंसलों की हवा...
ज़मीन से उठ चली, तो आसमाँ होगी ज़िन्दगी...

उलझनों को सीने में, बस इसलिए छुपा लेते हैं...
सुलझाना अगर चाहा, तो परेशाँ होगी ज़िन्दगी...

वक़्त के इशारे पे, हर मरासिम बिखर जाते हैं...
मिल के बिछड़ गए, तो दास्ताँ होगी ज़िन्दगी...

~abhi