Wednesday, June 1, 2011

Aankhein

कहते हैं की ख्वाहिशें, ख्वाब बनकर आपकी आँखों में चली आतीं हैं...
और मैं था, की एक अधूरे ख्वाब की जुस्तजू में जागता रह गया...

आज भी आँखें वही ख्वाब तलाश कर रहीं थी...
वही ख्वाब जिसमे तुम मेरे रू-ब-रू रहती हो...
इतने करीब, की एक लम्हे में ही, मेरे सीने का दर्द तुम्हारी आँखों में जाकर छिप जाता है...
और ठीक उसी पल, 
तुम्हारे होंठों की हंसी, सौ धडकनें बनके मेरी डूबती नब्ज़ को फिर से जिंदा कर देती है...

कभी तो तुमसे नज़रें मिलाने का हौंसला भी नहीं होता...
एक पलक में ही तुम्हारी नज़र, दिल में उतर के सब मुआम्लात जान लेतीं हैं...
और फिर एक, बच्चों की सी शरारत, उभरती है इन में...
जैसे कह रहीं हों... "हमको सब खबर है"...

बहुत खूबसूरत होतीं हैं तुम्हारी आँखें उस पल...
मासूमियत के सफ़ेद निश्छल पानी में तैरता हुआ, शरारत का कत्थई रंग...
जितनी हसीन... उतनी ही ज़हीन भी...

हर बार, ऐसे ही, फिर से जी उठता हूँ मैं...
और फिर बातें करते रहते तुम और मैं... न जाने कितनी देर तक...
शायद, एक आहट के होने तक... 
इस ख्वाब के टूट जाने तक...

और फिर वही लम्बी सी खामोशी... फिर उसी ख्वाब का इंतज़ार...

~abhi

Khoya Sa

शब-ए-हिज्र का जागा मुसाफिर, मंजिल पे सोया सोया सा लगा...
हंसता हुआ आ मिला मुझे, और तन्हाई में रोया रोया सा लगा...


वो ख़ुलूस न मिला उन आँखों में, वो शिद्दत न रही ज़ज्बातों की...
वो वापस लौट आया था मगर, फिर भी खोया खोया सा लगा...



~abhi