Sunday, October 31, 2010

Alfaaz

बेबसी है के बयाँ करें हम दर्द-ए-सुखन, 
पर न अल्फाजों में फ़रियाद रहे...

ज़िक्र तेरा भी हो जाये नज़्म में, 
और बेहर-ओ-काफिया भी याद रहे...

-abhi

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