वज़ह
बदलते मौसमों के साथ लोग भी बदले... अब उस मोड़ पे दोस्त, पुराने नहीं मिलते...
तेरी जुस्तजू से बोझल रहती हैं आँखें, मुझको मेरे ख्वाब, पुराने नहीं मिलते...
जीते रहने की वज़ह तो होती है, जीने के बहाने नहीं मिलते...
मुख़्तसर
एक पलक देख लूं जो तुझको, और हर जुस्तजू मुख़्तसर हो जाए...
कहर
उसके हुस्न का कहर, इस कदर है आसमानों में, आज तक..
आफताब बादलों में छिपता फिरता है, चाँद अधूरा है आज तक...
~abhi
ye shah’r apnaa, ajab shah’r hai
ReplyDeleteke raatoN ko
saRak pe chaliye tau sargoshiyaaN sii kartaa hai
bulaa ke zakhm dikhaataa hai
raaz-e-dil kii tarah
dariiche band
galii chup
niDhaal diivaareN
kivaaR muh’r-balab
gharoN meN mayyateN thahrii hu’ii haiN barsoN se
kiraaye par —— !