Wednesday, October 13, 2010

Ashaar


वज़ह

बदलते मौसमों के साथ लोग भी बदले... अब उस मोड़ पे दोस्त, पुराने नहीं मिलते...
तेरी जुस्तजू से बोझल रहती हैं आँखें, मुझको मेरे ख्वाब, पुराने नहीं मिलते...
जीते रहने की वज़ह तो होती है, जीने के बहाने नहीं मिलते...

मुख़्तसर

एक पलक देख लूं जो तुझको, और हर जुस्तजू मुख़्तसर हो जाए...

कहर
 
उसके हुस्न का कहर, इस कदर है आसमानों में, आज तक..
आफताब बादलों में छिपता फिरता है, चाँद अधूरा है आज तक...

~abhi

1 comment:

  1. ye shah’r apnaa, ajab shah’r hai
    ke raatoN ko
    saRak pe chaliye tau sargoshiyaaN sii kartaa hai
    bulaa ke zakhm dikhaataa hai
    raaz-e-dil kii tarah

    dariiche band
    galii chup
    niDhaal diivaareN
    kivaaR muh’r-balab
    gharoN meN mayyateN thahrii hu’ii haiN barsoN se
    kiraaye par —— !

    ReplyDelete