कितने चुप-चाप से लगते हैं शज़र, शाम के बाद
इतने चुप-चाप के रास्ते भी रहेंगे ला-इल्म
छोड़ जायेंगे किसी रोज़ नगर, शाम के बाद
शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा
जिसके हांथों में थे टूटे हुए पर, शाम के बाद
तू है सूरज तुझे मालुम कहाँ रात का दुःख
तू किसी रोज़ मेरे घर में उतर, शाम के बाद
-- फ़रहात अब्बास
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