Sunday, October 24, 2010

Shaam

तुझ बिन इक इक लम्हा, अंधेरो में गुजरा है इस कदर...
जैसे की एक रात ढली हो, और फिर शाम हो जाए...

उजाले अपनी यादों के हामारे साथ रहने दो...
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए...

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