ये जिंदगी... ये जिंदगी...आज जो तुम्हारे... बदन की छोटी बड़ी नसों में मचल रही है...तुम्हारे पैरों से चल रही है...तुम्हारी आवाज़ में गले से निकल रही है...तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढल रही है...
ये जिंदगी... जाने कितनी सदियों से यूँही शक्लें बदल रही है...बदलती शक्लों... बदलते जिस्मों... में चलता फिरता ये एक शरारा...जो इस घड़ी नाम है तुम्हारा...उसी से सारी चहल पहल है... उसी से रोशन है हर नज़ारा...
सितारे तोड़ो... या घर बसाओ...कलम उठाओ... या सर झुकाओ...तुम्हारी आँखों की रौशनी तक... है खेल सारा...
ये खेल होगा... नहीं दुबारा...ये खेल होगा... नहीं दुबारा...
If they ever tell my story, let them say: I walked with the giants. Men will rise and fall like the winter wheat but these names will never die...
Tuesday, January 26, 2010
Ye Zindagi
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