Tuesday, January 26, 2010

Ashaar






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पिछले सफ़र की धूल को दामन से हटा दो
आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर

बेरंग आसमान को देखेगी कब तलक
मंजर नया तलाश करेगी निगाह फिर

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सफ़र की हद है वहां तक के कुछ निशान रहे
चले चलो के जहां तक ये आसमान रहे

ये क्या के उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो जब है की पैरों में थकान रहे

वो शक्श मुझको कोई जालसाज़ लगता है 
तुम उसको दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे

वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा
दुआ करो के सलामत मेरी ज़बान रहे

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डूबे हुए जहाज़ पे क्या अफ़सोस करें हम 
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर
क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया

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1 comment:

  1. wah wah....... Especially the last one -

    डूबे हुए जहाज़ पे क्या अफ़सोस करें हम
    ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया

    यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर
    क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया

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