तकती हैं रहगुज़र
उसकी...
मुन्तजिर ये आँखें कब से...
पूछ लेती हैं अजनबियों से...
कोई दिखा था क्या...
इन राहों की ओर आता हुआ...
कोई ख़त सा ही दे दिया हो... शायद...
जेबें टटोलना एक बार...
कितने दिन गुज़र गए... अब तो...
मुन्तजिर ये आँखें कब से...
पूछ लेती हैं अजनबियों से...
कोई दिखा था क्या...
इन राहों की ओर आता हुआ...
कोई ख़त सा ही दे दिया हो... शायद...
जेबें टटोलना एक बार...
कितने दिन गुज़र गए... अब तो...
मेरे बिन इतने दिन,
तो कभी गुज़ारे नहीं उसने...
बदलते मौसमों के
साथ...
आदतें भी बदल जाती हैं क्या...
थोड़ी देर और देख लेता हूँ...
क्या पता...
अब किसी बात की ज़ल्दबाज़ी भी कहाँ है...
दो ही तो लम्हे हैं...
पहला भी इंतज़ार था...
आखिरी भी... वही...
~abhi
आदतें भी बदल जाती हैं क्या...
थोड़ी देर और देख लेता हूँ...
क्या पता...
अब किसी बात की ज़ल्दबाज़ी भी कहाँ है...
दो ही तो लम्हे हैं...
पहला भी इंतज़ार था...
आखिरी भी... वही...
~abhi
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