एक ख्वाब सा कुछ... रखा था...
उन चमकती आँखों में...
जाने कितने दिनों से...
अब धीमे धीमे पिघल सा रहा है...
पलकों के किनारे से...
नमी कम होती जाती है इन आँखों की...
समंदर भी सेहरा हो जाते हैं न...
शायद ये ख्वाब भी... किसी दिन...
अल्फाजों की कफ़न पहन लेगा...
काफिये की दो गज़ ज़मीन मिलेगी इसे...
चाहने वाले भी तो रो पड़ेंगे न...
वाह वाह कहके...
-abhi
उन चमकती आँखों में...
जाने कितने दिनों से...
अब धीमे धीमे पिघल सा रहा है...
पलकों के किनारे से...
नमी कम होती जाती है इन आँखों की...
समंदर भी सेहरा हो जाते हैं न...
शायद ये ख्वाब भी... किसी दिन...
अल्फाजों की कफ़न पहन लेगा...
काफिये की दो गज़ ज़मीन मिलेगी इसे...
चाहने वाले भी तो रो पड़ेंगे न...
वाह वाह कहके...
-abhi
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