हर ग़जल में कुछ नयी रानाईयां रखते हैं हम…
अपने फ़न में आपकी परछाईयाँ रखते हैं हम…
ख्वाब में आती हैं अक्सर शोख सरगम की परी…
नींद में बजती हुई शहनाईयां रखते हैं हम…
बेक़रारी, बेख़याली, बेखुदी, बेगानगी…
हर तरह की आजकल तन्हाईयाँ रखते हैं हम…
ज़ेहन-ऒ-दिल पर छा गया है यूँ तस्सवुर आपका…
रूह से साँसों तलक़ गहराईयाँ रखते हैं हम…
कल तलक़ तो अजनबी थे शहर में अपने मगर…
बारहाँ हर शहर में रुसवाईयाँ रखते हैं हम…