Wednesday, May 12, 2010

Bas ye hi Khwaab

साँसों को रोके रखते हैं, हर इक दुआ के असर होने तक...
हमने जिंदगी को ताक़ पे रख के, हर दम फ़र्ज़ निभाया है...

जानी पहचानी सी तन्हाई की महफ़िल, और पराया हर सख्श...
मैंने जिसको भी कभी अपना समझा, वो मेरा न हो पाया है...

तुम आँखों की सुर्खियत को, खुमार-ए-बादा न समझ लेना...
ये तो रंग-ए-खून-ए-जिगर है, जो आँखों में उतर आया है...


अपना सा कोई एक आसमां हो, इस बेरहम सी जमीं से दूर...
सिर्फ यही जुस्तजू रखते हैं, बस ये ही ख्वाब सजाया है...


--abhi

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