ये बेबसी... ये तिश्नगी... ये अकेलापन... ये आवारगी...
हर साँस जैसे क़र्ज़ हो... हो उधार जैसे ये ज़िन्दगी...
मौत की इसको तलाश है... और जीने की है बेचारगी...
हर ज़ख्म जैसे लाइलाज़ हो... हो बीमार जैसे ये ज़िन्दगी...
न ख्वाहिशों के पंख हैं... न जुस्तजू की परवानगी...
आरज़ू यहाँ एक जुर्म है... हो गुनाहगार जैसे ये ज़िन्दगी...
~abhi