Wednesday, June 1, 2011

Khoya Sa

शब-ए-हिज्र का जागा मुसाफिर, मंजिल पे सोया सोया सा लगा...
हंसता हुआ आ मिला मुझे, और तन्हाई में रोया रोया सा लगा...


वो ख़ुलूस न मिला उन आँखों में, वो शिद्दत न रही ज़ज्बातों की...
वो वापस लौट आया था मगर, फिर भी खोया खोया सा लगा...



~abhi

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