वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता... मौसम बदल जाते हैं, वक़्त के साथ लोग बदल जाते हैं...
शायद सब कुछ ही बदल जाता है...
पर कुछ एक रिश्ते कभी नहीं बदलते... ता उम्र वैसे ही बने रहते हैं...
वही खुलूस... वही कशिश...
तुमसे मेरा रिश्ता भी कुछ ऐसा ही तो हैं ना... जैसा किसी सूखे फूल का पुरानी किताब से...
हाँ.. बिलकुल ऐसा ही...
फूल अब अपनी खुशबू खो चुका है, मुरझा सा गया है... और अब वो पहले वाला सुर्ख रंग भी तो न रहा...
पर अब भी उतना ही जिंदा जान पड़ता है... जैसे अभी अभी खिला हो...
शायद अब वो ये समझ चुका है की... यही उसकी किस्मत है... यही उसका आखिरी ठिकाना...
उसे इसी तरह खो जाना था...
पर जाने क्यों, हर नफस, उसे ये एहसास हुआ करता है... की वो अपनी ही किसी अमानत क साथ है... सुरक्षित है...
दो पन्नो में कैद... मगर हिफाज़त से... सुकून क साथ...
हमारी कहानी भी तो ऐसी ही है न...
कितने सारे लम्हे हैं न, हमारी जिंदगी की किताब में... काफी सारे ख़ुशी भरे... कुछ ग़म में लिपटे...
कुछ तो अब धुंधले से हो रखे हैं... कुछ आज भी एकदम तरो-ताज़ा... जैसे अभी की बात हो...
याद है तुम्हे, जब तुम हर रोज़ टकटकी लगाए सूरज को डूबता देखा करती थी... और मैं इस इंतज़ार में रहता था...
के कब तुम्हारी ये बच्चो जैसी हरकत ख़त्म हो... और हम वापस लौट सकें...
अब सोचता हूँ, की मुझे किस बात की जल्दी रहती थी... ऐसा क्या था उस डूबते सूरज में... जो मुझे तब नहीं दिखा...
तुम से ही पूछ लेता शायद...
अब समझ आया है तो देर हो चुकी है... अब सिर्फ मैं हूँ और ये डूबता सूरज...
एक वो दिन भी था ना... जब किसी लतीफे पे हँसते हँसते तुम रो पड़ी थी... और जब तुम्हारा रोना बंद हुआ... तो हम फिर हंस पड़े...
न जाने कितनी देर तक... हँसते रहे...
उन ठहाकों की गूँज अब भी सुनाई पड़ती है... कभी कभी... मद्धम सी... मगर देर तक...
फिर जाने कैसे सब कुछ बदल सा गया... जिंदगी कभी वार्निंग भी तो नहीं देती न...
तुमने जाने की बात कर दी...
अब मैं थक सा गया हूँ... जाने कई सालों से... वहीँ खोया सा... गुमनाम...
दो लम्हों की जंजीर से जकड़ा हुआ...
एक लम्हा वो था...
जब मैं तुम्हे जाता हुआ देख रहा था... एक उम्मीद भी थी... के शायद तुम पलट के देखोगी... शायद.. वापस आ जाओगी...
पर तुम नहीं आयीं... खो गयी तुम... उस कोहरे में कहीं...
एक उसके बाद का लम्हा...
जो मेरे लिए... कभी ख़त्म ही नहीं हुआ...
--abhi