जैसे किसी ने...
जबरन ही भेज दिया हो उसे...
मेरी तन्हाई के पास...
मेरी ही ये ज़िन्दगी...
मेरे नफ़्ज़ोँ में कसमसाती...
बिलखती हुई सी... महसूस हुई...
जैसे पुकारती हो मुझे...
मानो कहती हो...
"अब जाने दो न मुझे..."
तुमने बेकार ही...
ये ताने-बाने उलझा रखे हैं...
ज़िन्दगी कभी...
लकीरों में नहीं होती...
न ख़्वाबों सी होती है...
ये तो किसी मंज़िल का नाम भी नहीं...
ये तो बस एक रहगुजर थी...
एकतरफा...
तुम तक पहुँच ही न सकी जो...
वापस लौट पाने की...
कोई राह ही नहीं मिलती...
देखो न...
मैं कितनी दूर निकल आया...
~abhi