"फ़राज़" अब जरा लहजा बदल के देखते हैं...
जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जाने-सफ़र...
कुछ और दूर जरा साथ चल के देखते हैं...
ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में...
जो लालचों से तुझे मुझको जल के देखते हैं...
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए...
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं...